तनहाँ शाम मेँ सूरज डूब रहा है,
कम्बख्त याँदेँ इस तरह समेट के आयी है जैसे आम के पेड के नीचे दोस्त जमे हो गिल्ली डंडा खेलने...
काश ये वक्त की दीवार बीच मेँ ना होती...
.........Pratima
कम्बख्त याँदेँ इस तरह समेट के आयी है जैसे आम के पेड के नीचे दोस्त जमे हो गिल्ली डंडा खेलने...
काश ये वक्त की दीवार बीच मेँ ना होती...
.........Pratima
No comments:
Post a Comment